2025 की छठ पूजा: चहाठी माँ को खुश करने के लिये 5 अनिवार्य फल

2025 की छठ पूजा: चहाठी माँ को खुश करने के लिये 5 अनिवार्य फल

जब छठी माँ, भक्तों की परम्परागत देवी, और सूर्य देव के सम्मान में छठ पूजा 2025बिहार का पहला दिन आया, तो हर घर में तैयारियों का जलवा धीरे‑धीरे दृश्यमान हो गया। इस चार‑दिन के पावन महापर्व में सबसे अहम बात होती है भक्तों द्वारा माँ को अर्पित किए जाने वाले पाँच फल—जो संपत्ति, स्वास्थ्य और खुशी के आगमन का प्रतीक माने जाते हैं।

छठ पूजा का इतिहास और आधुनिक परिप्रेक्ष्य

छठ पूजा की जड़ें प्राचीन वैदिक सूर्य आराधना में हैं, लेकिन आज इसका स्वरूप मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में विकसित हुआ है। 2025 में यह पर्व 25 अक्टूबर (पहला दिन – नहाय-खाय) से 28 अक्टूबर (चौथा दिन – उज्जी अर्घ्य) तक मनाया जाएगा। पहले केवल किसान और नदी किनारे के लोग ही इसे अपने कृषि‑जीवन के साथ जोड़ते थे, पर अब शहरी मध्यवर्गीय परिवार भी बड़ी धूमधाम से इस रिवाज को अपनाते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, छठ के दो मुख्य अर्घ्य (संध्या अर्घ्य और सुबह अर्घ्य) को सूर्यदेव और छठी माँ के लिए जल, चावल, माल-दाल, गीता, और फलों से सजाया जाता है। इन अर्घ्यों में ‘सात फल’ (संतरा, नारियल, केसर, गन्ना, खजूर, इत्यादि) का प्रयोग होता है, पर विशेष रूप से माँ को दिए जाने वाले पाँच फल आज के लेख का केंद्र हैं।

छठी माँ को अर्पित करने वाले पाँच फल

स्थानीय विद्वानों और पंडितों के मतानुसार, इन पाँच फलों में प्रत्येक का अपना आध्यात्मिक अर्थ है। नीचे इन फलों की सूची और उनके प्रतीकात्मक महत्व का विवरण दिया गया है:

  1. केला – समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक। बनाना आसानी से खाया जाता है, इसलिए इसे आशा की झलक माना जाता है।
  2. संतरा – जीवन की ऊर्जा और उज्ज्वलता। सूर्य के रंग से जुड़ा हुआ, यह माँ को दी जाने वाली प्रशंसा में प्रकाश लाता है।
  3. सेब – स्वास्थ्य और दीर्घायु। सेब को ‘जीवन का फल’ कहा जाता है, इसलिए इसे अर्पित करने से परिवार में रोग‑मुक्ति की कामना की जाती है।
  4. आम – खुशहाली और आनंद। गर्मियों का राजा होने के कारण, इसे खुशियों की बारिश का प्रतिनिधित्व माना जाता है।
  5. अमरूद – सौहार्द और परिवारिक मिलन। अमरूद का मीठा स्वाद रिश्तों को मधुर बनाता है, इसलिए इसे शांति के उपहार के रूप में चढ़ाया जाता है।

इन फलों को साफ‑सुथरा पानी में धोकर, सुबह के अर्घ्य के समय गंगा या घाघरा नदी के तट पर रख दिया जाता है। कई घरों में फलों को ‘दूध’ और ‘गुड़’ के साथ मिलाकर विशेष रबाब (फ्रूट पेस्ट) भी तैयार किया जाता है, जो माँ को अर्पित किया जाता है।

रिवाज़ों की विस्तृत प्रक्रिया

पाँच फलों की तैयारी के अलावा छठ पूजा में कई अन्य अनुष्ठान भी होते हैं। पहला दिन ‘नहाय‑खाय’ में श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करके शुद्ध भोजन करते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ (सूर्यास्त के समय) में फलों, प्रसाद और ठंडे पानी का सेवन किया जाता है। तिसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ में सूर्यास्त के समय घोड़े के काठी पर खड़े हो कर अर्घ्य दिया जाता है, और चौथे दिन ‘उषा अर्घ्य’ (सूर्योदय) में फिर से अर्घ्य दिया जाता है।

हर अर्घ्य में पाँच फल का विशेष उल्लेख होता है; क्योंकि इन्हें ‘पाँच भाग्य’ के रूप में माना जाता है। यदि इन फलों को सही मनःस्थिति और शुद्धता के साथ अर्पित किया जाए, तो माना जाता है कि माँ छत्री नीचे की कठिनाइयाँ दूर कर देती हैं।

वर्तमान में फल चयन पर विशेषज्ञों की राय

ज्येष्ठ पंडित डॉ. जगदीश प्रसाद ने बताया कि आज के समय में स्थानीय बाजार में उपलब्ध फल ही सही होते हैं, क्योंकि वे अपनी मौसमी ताजगी और पवित्रता में श्रेष्ठ होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि फल आकर्षक लगते हैं तो उन्हें ‘शुद्ध जल’ में भिगोकर दो‑तीन घंटे तक रख देना चाहिए, जिससे उनका ‘आत्मा‑शुद्धिकरण’ हो जाता है।

एक कृषि विज्ञान विशेषज्ञ, डॉ. रीमा सिंह, ने कहा कि फल चयन में पोषक तत्वों की विविधता भी महत्वपूर्ण है। “केला पोटेशियम से भरपूर है, सेब विटामिन‑C देता है, और अमरूद फाइबर का स्रोत है – ये सब मिलकर शारीरिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलित रखते हैं,” उन्होंने बताया।

भविष्य में छठ पूजा और फल‑परम्परा की संभावनाएँ

जैसे‑जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, युवा पीढ़ी ने भी इस परम्परा को सोशल मीडिया के माध्यम से नई रूप‑रेखाएँ दी हैं। इंस्टाग्राम पर #ChhathFruits ट्रेंड में कई युवाओं ने बच्चों के हाथों से फल तैयार करते हुए और परम्परागत गाने गाते हुए छोटे‑छोटे क्लिप पोस्ट किये हैं। इस डिजिटल परिवर्तन ने न केवल परम्परा को नई जनसँख्या तक पहुँचाया है, बल्कि फल चयन की विविधता भी बढ़ा दी है—जैसे की पपीता, अननास जैसे विदेशी फलों को भी सम्मिलित किया जा रहा है।

सरकारी स्तर पर भी कई पहल चलाई जा रही हैं: बिहार सरकार ने 2025 में ‘छठी माँ के फल’ अभियान शुरू किया, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों को विशेष तौर पर हाई‑कैलोरी वाले फलों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये सब्सिडी दी जाएगी। इस कदम से न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि धार्मिक भावना को भी सुदृढ़ किया जाएगा।

छठ पूजा 2025 का सारांश

संक्षेप में, छठ पूजा 2025 25‑28 अक्टूबर तक बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी और नेपाल में मनाया जाएगा। इस पर्व में कपड़ों की सफ़ेद पंक्तियों, गंगाजल की चहक, और पाँच फलों का विशेष महत्व है। यदि आप इस वर्ष छठी माँ को फल अर्पित करने की सोच रहे हैं, तो ऊपर दिए गये पाँच फलों को चुनें, उन्हें शुद्ध जल में धुलेँ, और अर्घ्य के समय माँ के समक्ष रखें। आपका यह छोटा‑सा प्रयास, माँ के आशीर्वाद को बुलाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

छठ पूजा में किन फलों को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है?

भक्त अक्सर केला, संतरा, सेब, आम और अमरूद को पाँच मुख्य फल मानते हैं। ये फल समृद्धि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आनंद और सौहार्द के प्रतीक माने जाते हैं, जिससे माँ को सुख‑समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

क्या छठी माँ को अर्पित करने के लिये फल स्थानीय बाजार से ही लेना चाहिए?

हां, स्थानीय मौसमी फल अधिक पवित्र और ताज़ा होते हैं। वे अपनी प्राकृतिक शुद्धता के कारण अर्घ्य में सबसे उपयुक्त माने जाते हैं, लेकिन अगर किसी कारणवश विदेश के फल चाहिए हों तो उन्हें भी शुद्ध जल में कम से कम दो घंटे भिगोकर इस्तेमाल किया जा सकता है।

छठ पूजा 2025 के प्रमुख तिथियों में क्या खास है?

2025 में छठ पूजा 25 अक्टूबर (नहाय‑खाय), 26 अक्टूबर (खरना), 27 अक्टूबर (संध्या अर्घ्य) और 28 अक्टूबर (उषा अर्घ्य) को मनाई जाएगी। इन चार दिन में सूर्यास्त और सूर्योदय के समय विशेष अर्घ्य होते हैं, जिसमें फल, जल, दूध और गुड़ का प्रयोग किया जाता है।

क्या फल अर्पित करने से कोई वैध धार्मिक मान्यता मिलती है?

हिंदू शास्त्रों में फल को ‘प्रसाद’ कहा गया है, जो देवता को भेंट करने के बाद भक्त को दोबारा दिया जाता है। छठी माँ को फल अर्पित करने से घर में सुख‑शांति, स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि के लिए आशा का प्रतीक बनता है।

छठ पूजा के दौरान फल तैयार करने की सही विधि क्या है?

फल को साफ़ पानी से धोकर, हल्का‑हल्का नमक डालकर 5‑10 मिनट तक भिगोना चाहिए। फिर पानी निकाल कर, उन्हें सूती कपड़े से पोंछ कर अर्घ्य के लिए तैयार रखें। यदि कई घर एक साथ अर्पित कर रहे हैं तो फल को एक बड़े पैन में हल्का‑हल्का लि‍टा कर रखें, जिससे उनका सुगंध बढ़े।

टिप्पणि (1)

  • BALAJI G

    BALAJI G

    21 10 25 / 22:04 अपराह्न

    भक्तों को याद रखना चाहिए कि फल सिर्फ भोजन नहीं बल्कि माँ की आराधना का साधन है। सही समय पर मौसमी फल चुनना आध्यात्मिक शुद्धि लाता है। यदि कोई लोग आधुनिक फल लेकर आते हैं तो वह परम्परा के मूल को धुंधला करता है। यह हमारे सामाजिक मूल्यों को कमजोर नहीं करने देना चाहिए।

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