अजीत डोभाल को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के रूप में तीसरी बार पुनर्नियुक्त किया गया है, जिससे वे इस महत्वपूर्ण पद पर लगातार तीन बार सेवा देने वाले पहले व्यक्ति बन गए हैं। इस पुनर्नियुक्ति के साथ, डोभाल आगे भी देश की सुरक्षा रणनीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। उनकी नियुक्ति 10 जून 2024 से प्रभावी होगी और इसका कार्यकाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के साथ सह-टर्मिनस होगा या अगले आदेश तक जारी रहेगा।
डोभाल की नई नियुक्ति को मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति द्वारा मंजूरी दी गई है। वे ©स्वपीके मिश्रा के साथ काम करेंगे, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव के रूप में निकटतम सहयोगी बने रहेंगे। उन्हें भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है।
अजीत डोभाल एक सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी हैं, जिन्होंने 33 वर्षों तक इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। इस दौरान उन्होंने उत्तर पूर्व, जम्मू और कश्मीर, और पंजाब जैसे तनावपूर्ण क्षेत्रों में भी अपनी सेवाएं दी हैं। इसके अलावा, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में भी कार्य किया है। उनके विस्तृत अनुभव और गहरे रणनीतिक दृष्टिकोण ने उन्हें भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए अमूल्य संपत्ति बना दिया है।
पीके मिश्रा, जो गुजरात काडर के सेवानिवृत्त IAS अधिकारी हैं, केंद्र और गुजरात सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में अतिरिक्त प्रधान सचिव के रूप में सेवा की थी और मोदी के दूसरे कार्यकाल में उन्हें उसी पद पर पुनर्नियुक्त किया गया था। इससे पहले वे 2001-2004 के बीच जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उनके प्रधान सचिव रह चुके हैं।
डोभाल और मिश्रा दोनों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है, जो उनके द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिकाओं को और अधिक जिम्मेदारी के साथ परिभाषित करता है। इस कदम को सरकार की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में देखा जा रहा है।
भारत के सुरक्षा के माहौल में डोभाल और मिश्रा जैसे अनुभवी अधिकारियों की भूमिका अविस्मरणीय है। डोभाल का अनुभव, विशेष रूप से खुफिया और सुरक्षा संचालन में, देश की सुरक्षा रणनीतियों को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध होता है। मिश्रा का प्रशासनिक कौशल और मोदी के साथ लंबे समय तक काम करने का अनुभव प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यक्षमता बढ़ाता है।
यह तीसरा कार्यकाल न केवल अजीत डोभाल के व्यक्तिगत करियर के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देश की सुरक्षा और रणनीतिक दिशा के लिए भी अहम है। उनके विस्तृत अनुभव और नेतृत्व क्षमता से भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को एक नया दिशानिर्देश मिल सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के चलते, यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे आने वाले वर्ष भारत की सुरक्षा चुनौतियों को सामना करेंगे।
उम्मीद की जा रही है कि डोभाल और मिश्रा की जोड़ी मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा को और मजबूती देंगे और भारत को एक सुरक्षित और स्थिर राष्ट्र बनाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।
vishal singh
14 06 24 / 12:26 अपराह्नअजीत डोभाल को तीसरी बार नियुक्त करना सिर्फ अनुभव की बात नहीं, बल्कि एक सिस्टम की लापरवाही है। जब तक नए चेहरे नहीं आएंगे, तब तक ये सब एक ही घूंट में पी रहे हैं।
mohit SINGH
15 06 24 / 05:10 पूर्वाह्नअरे भाई ये तो बस एक राजनीतिक नाटक है! डोभाल जी को तीन बार नियुक्त करने का मतलब ये है कि कोई नया नहीं बन पा रहा। ये सब फोटो फिल्टर वाली सुरक्षा रणनीति है। बाहर दुनिया बदल रही है, हम अभी भी 2014 के फोटो पर फिक्स हैं। 😭
Preyash Pandya
15 06 24 / 05:26 पूर्वाह्नअरे यार ये तो बहुत बढ़िया है! 🤩 डोभाल और पीके मिश्रा की जोड़ी तो बिल्कुल ब्रेकिंग न्यूज है। दोनों ने अपने जीवन को इसी एक काम के लिए बलिदान कर दिया है। मोदी जी के लिए ये दोनों तो जिंदगी के साथी हैं। अगर ये दोनों नहीं होते, तो क्या होता? 😅 भारत की सुरक्षा तो अब इन्हीं के हाथों में है।
Priyanka R
16 06 24 / 22:08 अपराह्नये सब बस धोखा है। डोभाल को तीसरी बार नियुक्त किया गया, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ये सब एक बड़ा गुप्त अभियान है? अगर वो इतने जरूरी हैं, तो क्यों नहीं बनाया गया एक रिप्लेसमेंट प्लान? ये तो सिर्फ एक नियंत्रण की रणनीति है। आपको लगता है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो में कोई और नहीं है? 😏
Rakesh Varpe
17 06 24 / 22:22 अपराह्नअच्छा फैसला। अनुभव जरूरी है।
Girish Sarda
19 06 24 / 09:33 पूर्वाह्नडोभाल के अनुभव को देखकर लगता है कि ये नियुक्ति बहुत समझदारी से हुई है। मिश्रा के साथ उनकी जोड़ी तो प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए बहुत मजबूत लग रही है। ये दोनों अच्छी तरह से जानते हैं कि क्या चाहिए। बस उम्मीद है कि ये जोड़ी आगे भी ऐसा ही काम करती रहे।
Garv Saxena
20 06 24 / 11:54 पूर्वाह्नक्या आपने कभी सोचा कि जब एक व्यक्ति को तीसरी बार एक ही पद पर रखा जाता है, तो क्या वह व्यक्ति अब एक संस्था बन गया है? या फिर वह संस्था उस व्यक्ति के लिए बन गई है? हम अनुभव की तारीफ करते हैं, लेकिन क्या ये अनुभव नई सोच के लिए एक बाधा बन गया है? क्या हम विकास की बजाय स्थिरता को अपना लक्ष्य बना रहे हैं? ये तीसरा कार्यकाल सिर्फ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि हमारी राष्ट्रीय नीति के लिए एक दर्पण है। अगर एक आदमी के बिना देश नहीं चल सकता, तो शायद हमें अपने सिस्टम के बारे में दोबारा सोचना चाहिए।