छठ पूजा 2025: सूर्य देव और छठी मैया को अर्घ्य अर्पित करते हुए लाखों भक्तों ने शेयर किए खास शुभकामना संदेश

छठ पूजा 2025: सूर्य देव और छठी मैया को अर्घ्य अर्पित करते हुए लाखों भक्तों ने शेयर किए खास शुभकामना संदेश

जब सूरज डूबने लगा, तो गंगा के घाट पर खड़े लाखों भक्तों ने अपने हाथों में भरा जल उठाया — न सिर्फ एक पूजा के लिए, बल्कि एक वादे के लिए। छठ पूजा 2025 के दिन, बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के नदियों के किनारे शांति का एक अलग ही रंग छा गया। ये पर्व केवल व्रत नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है — जहां प्रकृति के प्रति आभार, शुद्धता का अभ्यास और एकता का संदेश एक साथ बहता है। इस बार, सूर्य देव और छठी मैया के प्रति श्रद्धा को दर्शाने के लिए लाखों लोगों ने छठ पूजा के विशेष संदेश व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और एसएमएस पर भेजे।

छठ पूजा का असली मनोवैज्ञानिक अर्थ: व्रत से आध्यात्मिक अनुभव तक

कई लोग सोचते हैं कि छठ पूजा सिर्फ एक दिन का उपवास और नदी में खड़े होने का नाम है। लेकिन जब आप किसी भक्त के चेहरे को देखें — जो सुबह के तीन बजे नदी किनारे खड़ा होकर सूर्य की पहली किरण का इंतजार कर रहा है — तो समझ आता है कि ये एक अनुभव है। जगरण के धार्मिक विभाग ने इसे सही ढंग से परिभाषित किया: "यह पर्व केवल व्रत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, पवित्रता और एकता का उत्सव है।" यहां कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि एक गहरा संबंध है — सूरज के साथ, जो हमारे जीवन का आधार है। इस वर्ष, लोगों ने व्रत के दौरान न सिर्फ भोजन बल्कि डिजिटल शोर को भी बंद कर दिया। लोग फोन बंद करके नदी के किनारे बैठे, बच्चों को सूर्य की आरती दिखाए, और बुजुर्गों के गीत सुने।

अर्घ्य के संदेश: जहां हर शब्द एक प्रार्थना है

इस बार, सोशल मीडिया पर वायरल हुए संदेश बस शुभकामनाएं नहीं थे — वो छोटे-छोटे आध्यात्मिक वाक्य थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक संदेश छापा: "माया की छाया आपके घर में शांति लाए, और सूर्य देव की किरणें आपके दिल के अंधेरे को दूर करें।" इकोनॉमिक टाइम्स के लेख में एक और गहरा विचार था: "सूरज का उदय न केवल दिन शुरू करता है, बल्कि हमारी आशाओं को भी नई ऊर्जा देता है।" लेकिन सबसे ज्यादा शेयर हुआ वो संदेश था जिसे जगरण ने प्रकाशित किया: "डूबते सूर्य की लालिमा आपको सुख-शांति दे, छठी मैया आपकी हर मनोकामना पूरी करे।" ये शब्द बस लिखे नहीं गए — वो गाए गए, बच्चों ने दरवाजे पर चिपकाए, और दूर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय ने अपने घरों में रिकॉर्ड किए।

रिट्यूअल्स का जीवन: नहाय खाय से उषा अर्घ्य तक

रिट्यूअल्स का जीवन: नहाय खाय से उषा अर्घ्य तक

छठ पूजा का आयोजन चार चरणों में होता है। पहला — नहाय खाय: भक्त नहाकर साफ होते हैं, और घर पर खाना खाते हैं। दूसरा — लोहंडा और खर्ना: ये दिन बिना पानी के 36 घंटे का उपवास होता है। तीसरा — संध्या अर्घ्य: शाम को नदी में खड़े होकर डूबते सूरज को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। और चौथा — उषा अर्घ्य: सुबह तीन बजे, जब आकाश अभी भी अंधेरे में होता है, भक्त फिर से नदी किनारे खड़े होते हैं। इस बार, पटना के गंगा घाट पर लगभग 12 लाख लोग एक साथ खड़े हुए। बच्चों के बीच एक नया रिवाज शुरू हुआ — वे अपने अर्घ्य के बर्तन में फूल नहीं, बल्कि रिसाइकिल किए गए कागज के टुकड़े रख रहे थे। ये छोटा सा बदलाव, एक बड़ा संदेश था: प्रकृति की सेवा के लिए हमें न केवल भक्ति, बल्कि जिम्मेदारी भी दिखानी होगी।

अंतरराष्ट्रीय असर: दुनिया के कोने में भी छठ की आरती

ये पर्व अब सिर्फ बिहार या झारखंड का नहीं रहा। न्यूयॉर्क के हार्लेम में एक छोटा सा ग्रुप ने नदी के बजाय एक बड़े टैंक में पानी भरकर अर्घ्य अर्पित किया। सिंगापुर के भारतीय समुदाय ने अपने घरों के बाहर छोटे-छोटे अर्घ्य स्थल बनाए। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक विद्यालय ने बच्चों को छठ पर आधारित एक नाटक प्रस्तुत किया। ये सब दिखाता है कि छठ पूजा अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं — ये एक सांस्कृतिक डायस्पोरा की पहचान है। एक वृद्धा ने न्यूजीलैंड से अपने बेटे को फोन करके कहा: "तुम जहां भी हो, जब सूरज निकले, तो एक पल के लिए रुक जाना। उसकी किरणें तुम्हारे लिए भी अर्घ्य बन जाएंगी।"

क्या आगे होगा? छठ का भविष्य और युवाओं की भूमिका

क्या आगे होगा? छठ का भविष्य और युवाओं की भूमिका

पुराने नियम बदल रहे हैं। अब युवा लोग अर्घ्य के बर्तन में प्लास्टिक की जगह बांस के बर्तन इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ संगठन ने नदियों के किनारे डिजिटल अर्घ्य के लिए QR कोड लगाए हैं — जहां लोग अपने संदेश लिख सकते हैं, और वो स्क्रीन पर दिखते हैं। ये नया तरीका वृद्धों को अजीब लग रहा है, लेकिन युवाओं को ये अपने संस्कारों को बनाए रखने का एक तरीका लगता है। एक इंजीनियर ने बताया: "मैंने एक ऐप बनाया है जिसमें छठ के लिए ऑनलाइन अर्घ्य भेजा जा सकता है। लेकिन उसके बाद, मैं अपने घर पर नदी किनारे जाता हूं। डिजिटल तो एक सहायक है, असली अनुभव तो भूमि और जल पर ही आधारित है।"

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

छठ पूजा 2025 कब मनाई जाएगी?

छठ पूजा 2025 का दिन 27 अक्टूबर को शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आयोजित किया जाएगा। संध्या अर्घ्य 6:18 बजे और उषा अर्घ्य 5:47 बजे (IST) के आसपास होगा। ये समय बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनुसार तय किया गया है।

छठ पूजा क्यों इतनी महत्वपूर्ण है?

यह पर्व केवल सूर्य की पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार, शुद्धता के अभ्यास और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। यह एक ऐसा त्योहार है जहां व्रत, निष्ठा और जल की शुद्धता के माध्यम से जीवन के बुनियादी सिद्धांतों को फिर से याद किया जाता है।

छठ पूजा के दौरान क्या खाया जाता है?

नहाय खाय के दिन भक्त घर के बने सादे भोजन जैसे दाल, चावल, आलू और गुड़ के लड्डू खाते हैं। लोहंडा के दिन बिना पानी के 36 घंटे का उपवास होता है। उषा अर्घ्य के बाद, खर्ना के लिए फिर से घर का बना भोजन खाया जाता है।

छठ पूजा के लिए सबसे लोकप्रिय शुभकामना संदेश कौन सा है?

"डूबते सूर्य की लालिमा आपको सुख-शांति दे, छठी मैया आपकी हर मनोकामना पूरी करे" — यह संदेश जगरण, टाइम्स ऑफ इंडिया और व्हाट्सएप पर सबसे ज्यादा शेयर हुआ। इसकी भावनात्मक गहराई और शब्दों की सादगी ने इसे लाखों लोगों के दिल छू लिया।

क्या छठ पूजा केवल हिंदू ही मनाते हैं?

नहीं। बिहार और झारखंड में कई अन्य समुदाय भी इस पर्व को अपनाते हैं, जिनमें नागपुरिया, भोजपुरी और अवधी बोलने वाले लोग शामिल हैं। विदेशों में भी बहुत से लोग जो हिंदू नहीं हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति से जुड़े हैं, वो भी इस दिन नदी किनारे जाते हैं।

छठ पूजा के लिए आज क्या नया हुआ?

इस बार युवाओं ने प्लास्टिक के बर्तनों के बजाय बांस और मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल किए। कुछ संगठनों ने QR कोड के जरिए डिजिटल अर्घ्य बनाए, जिससे दूर रहने वाले लोग भी अपने शुभकामना संदेश भेज सकें। लेकिन असली बदलाव ये है कि लोग अब त्योहार को एक अनुष्ठान के बजाय एक जीवन शैली के रूप में देख रहे हैं।

टिप्पणि (17)

  • Saachi Sharma

    Saachi Sharma

    28 10 25 / 08:57 पूर्वाह्न

    अर्घ्य में प्लास्टिक नहीं, बांस के बर्तन? बहुत बढ़िया... अब बताओ इसके बाद कब तक बांस के बर्तन बनाने वाले कामकाजी को देंगे?

  • Rupesh Nandha

    Rupesh Nandha

    29 10 25 / 15:32 अपराह्न

    यह पर्व, बस एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं... यह एक जीवन-दर्शन है, जो हमें याद दिलाता है कि हम किस तरह से प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं। जब आप सुबह तीन बजे नदी किनारे खड़े होते हैं, तो आपका दिमाग शांत हो जाता है-और यही तो आध्यात्मिकता का असली अर्थ है। डिजिटल अर्घ्य अच्छा है, लेकिन वो अनुभव नहीं दे सकता जो ठंडी हवा, नमी, और धीमी आरती के साथ आता है।

  • Sagar Solanki

    Sagar Solanki

    30 10 25 / 12:49 अपराह्न

    ये सब बकवास है। छठ पूजा कोई धार्मिक चक्र नहीं, बल्कि एक सामाजिक नियंत्रण यंत्र है। आप लोग यहां शुद्धता की बात करते हैं, लेकिन इसी नदी में शहरों का कचरा बह रहा है। और अब QR कोड? ये सब गवर्नमेंट और टेक कंपनियों का एक औजार है जो आपको बता रहा है कि आपको क्या विश्वास करना है। ये पर्व अब एक ब्रांड है।

  • Siddharth Madan

    Siddharth Madan

    31 10 25 / 18:27 अपराह्न

    सुंदर बात है। बच्चों को नदी किनारे ले जाना, फोन बंद करना, बुजुर्गों के गीत सुनना... ये सब बहुत जरूरी है। हमें इस तरह के पलों को बरकरार रखना होगा।

  • Nathan Roberson

    Nathan Roberson

    1 11 25 / 06:36 पूर्वाह्न

    मैं भी ऑस्ट्रेलिया में रहता हूं, और हमने अपने बगीचे में एक टैंक भरकर अर्घ्य अर्पित किया। मम्मी ने बनाया था गुड़ का लड्डू... बहुत याद आ गया।

  • Thomas Mathew

    Thomas Mathew

    3 11 25 / 00:00 पूर्वाह्न

    लोग बोल रहे हैं "आध्यात्मिक अनुभव"... अरे भाई, ये तो बस एक दिन का फोटो शूट है। फोन बंद करके खड़े होना? ये तो फिल्मों में देखा है। असली जीवन में कोई तीन बजे उठकर नदी किनारे नहीं जाता। ये सब इंस्टाग्राम के लिए है। 😏

  • Monika Chrząstek

    Monika Chrząstek

    3 11 25 / 23:19 अपराह्न

    मैंने अपनी नानी के साथ छठ मनाया... उन्होंने मुझे बताया कि जब वो छोटी थीं तो अर्घ्य में घी का दीया भी डालती थीं। अब तो सब बांस के बर्तन... पर दिल तो वही है। ❤️

  • Vitthal Sharma

    Vitthal Sharma

    4 11 25 / 08:53 पूर्वाह्न

    बांस के बर्तन बहुत अच्छा।

  • chandra aja

    chandra aja

    4 11 25 / 11:40 पूर्वाह्न

    QR कोड लगाने वाले लोगों को जानते हो? वो टेक कंपनियों के स्पाई हैं। वो तुम्हारे शुभकामना संदेशों को ट्रैक कर रहे हैं। अगर तुम लिखते हो "छठी मैया मुझे सफलता दे"... तो वो तुम्हारा नाम, लोकेशन, और तुम्हारे फोन का मॉडल ले लेते हैं।

  • Sutirtha Bagchi

    Sutirtha Bagchi

    5 11 25 / 04:26 पूर्वाह्न

    तुम सब इतना बड़ा बहस क्यों कर रहे हो? मैं तो बस अपने बच्चे को नदी किनारे ले गई... उसने एक फूल डाला और बोला "मम्मी, देवता खुश हो गए?" मैंने कहा हां। अब बस इतना ही चाहिए। 😘

  • Abhishek Deshpande

    Abhishek Deshpande

    5 11 25 / 18:48 अपराह्न

    मैंने देखा है, जब लोग अर्घ्य देते हैं, तो उनके हाथों में नमी होती है... ये नमी ही उनके आत्मा की शुद्धता का प्रतीक है। और फिर वो फोन उठाते हैं, और बताते हैं कि उन्होंने कितना अर्घ्य दिया... और यही बात असली अनुभव को नष्ट कर देती है।

  • vikram yadav

    vikram yadav

    6 11 25 / 01:25 पूर्वाह्न

    ये पर्व असल में एक ऐसा रिट्यूअल है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। यहां तक कि दुनिया के कोने में रहने वाले भी इसे अपनाते हैं... ये दिखाता है कि संस्कृति कभी नहीं मरती, बस बदल जाती है।

  • Tamanna Tanni

    Tamanna Tanni

    6 11 25 / 12:50 अपराह्न

    हर बार छठ पर लोग यही कहते हैं कि ये जीवन दर्शन है... लेकिन जब आप घर लौटते हैं तो फिर से वही शोर, वही फोन, वही अहंकार। अगर ये अनुभव सच में बदलाव लाता तो आज हमारे शहरों में नदियां नहीं बल्कि जल की धाराएं बहतीं।

  • Rosy Forte

    Rosy Forte

    6 11 25 / 18:41 अपराह्न

    ये सब एक व्यवस्थित रूप से निर्मित सांस्कृतिक नार्मेटिविटी है-एक बहुत बड़ी नियंत्रण तंत्र जो आपको बताती है कि कैसे आपको अपने आप को अनुभव करना चाहिए। डिजिटल अर्घ्य नहीं, आत्म-विकास का अभ्यास ही वास्तविक आध्यात्मिकता है। आप अपने अंदर के सूर्य की पूजा करें, बाहर के नहीं।

  • Yogesh Dhakne

    Yogesh Dhakne

    7 11 25 / 19:06 अपराह्न

    मैंने अपने बेटे के साथ नदी किनारे बैठकर देखा-सूरज डूब रहा था, और उसकी लालिमा ने उसके चेहरे को रोशन कर दिया। उसने कहा, "पापा, ये रोशनी असली है।" और मैंने समझ लिया।

  • kuldeep pandey

    kuldeep pandey

    8 11 25 / 12:40 अपराह्न

    हर साल यही बातें... लोग शुभकामना भेजते हैं, फिर अगले दिन अपने बॉस को गाली देते हैं। छठ का मतलब तो ये है कि आप अपने दिल को शुद्ध करें... लेकिन आप तो अपने दिमाग को भर रहे हैं फेक न्यूज़ और ट्रेंड्स से।

  • Hannah John

    Hannah John

    10 11 25 / 05:46 पूर्वाह्न

    ये QR कोड वाली बात तो अब बहुत ज्यादा हो गई... कल तक हम नदी किनारे जाएंगे, और आज कल हम अर्घ्य भेजेंगे एप से... फिर आगे क्या? आरती ऑटोमेटिक हो जाएगी? सूर्य को ब्लूटूथ से जोड़ देंगे? 😅

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