रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी की बेटी, ईशा अंबानी, ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपने निजी जीवन के बारे में एक महत्वपूर्ण खुलासा किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने IVF (इन विट्रो फ़र्टिलाइज़ेशन) के जरिए जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया है। यह खबर इसलिए भी खास है क्योंकि उनकी मां, निता अंबानी, ने भी IVF तकनीक का सहारा लिया था।
ईशा अंबानी, जो रिलायंस रिटेल में जिम्मेदारियों को पूरी परिपक्वता से निभा रही हैं, ने इस मुद्दे पर खुलकर बात की। उन्होंने ना केवल अपने अनुभव को साझा किया बल्कि IVF जैसे संवेदनशील विषय पर खुलकर बात करके समाज में जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की।
IVF एक आधुनिक चिकित्सा तकनीक है जिसमें अंडाणुओं और शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में निषेचित करके भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। यह तकनीक उन जोड़ों के लिए वरदान साबित हुई है जो बंद्यता (इन्फर्टिलिटी) की समस्या से जूझ रहे हैं।
भारत में, IVF का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है। बढ़ती व्यस्तताओं, कैरियर के दबाव, और अन्य कई कारणों से लोग शादी और परिवार बढ़ाने की योजनाओं को टालते जा रहे हैं। इस कारण से, बांझपन की समस्या भी बढ़ी है। ऐसे में IVF तकनीक ने उन दंपतियों को नई उम्मीद दी है जो प्राकृतिक तरीके से संतान प्राप्त नहीं कर पा रहे थे।
ईशा अंबानी से पहले, उनकी माँ निता अंबानी ने भी IVF तकनीक का सहारा लिया था। निता अंबानी के लिए भी यह निर्णय आसान नहीं था, पर उन्होंने इसे अपनाते हुए संजीवनी ही पाई। निता अंबानी ने भी अपने समय में इस पर खुलकर बात की थी, जो कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी।
निता अंबानी का यह साहसिक कदम उस समय भी चर्चा में रहा था और उन्होंने समाज में IVF के प्रति फैली भ्रांतियों को खत्म करने का महत्वपूर्ण काम किया।
भारत में बांझपन और IVF के बारे में अनेक मिथक और भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। कुछ लोग इसे अनैतिक या अप्राकृतिक मानते हैं, वहीं कुछ लोग इसे अंतिम उपाय के रूप में देखना पसंद करते हैं। वास्तव में, IVF उन अनेक दंपतियों के लिए एक सशक्त समाधान है जो कई सालों से संतान की प्राप्ति की आस लगाए बैठे हैं।
ईशा अंबानी और निता अंबानी जैसी प्रमुख हस्तियों द्वारा अपने IVF अनुभव साझा करने से समाज में इस तकनीक को लेकर जागरूकता और भरोसा बढ़ता है। यह खुलासा करके, ईशा ने दिखाया कि IVF करना किसी भी रूप में शर्मनाक या अनुचित नहीं है, बल्कि यह एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जो परिवारों को पूर्णता देती है।
IVF प्रक्रिया के कई चरण होते हैं और यह चिकित्सकों की निगरानी में होती है। सबसे पहले महिला के अंडाणुओं को उत्तेजित करने के लिए विशेष हार्मोन उपचार दिए जाते हैं। इसके बाद अंडाणुओं को निकाला जाता है और प्रयोगशाला में शुक्राणुओं के साथ निषेचित किया जाता है। जब भ्रूण तैयार हो जाता है, तब उसे महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
इस प्रक्रिया में समय और धैर्य की आवश्यकता होती है। IVF की सफलता दर भी कई कारणों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की उम्र, स्वास्थ्य स्थिति, और प्रति चक्र प्रयास।
IVF एकमात्र समाधान नहीं है और इसमें विभिन्न चुनौतियाँ भी होती हैं। इसके आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि IVF उपचार महंगा हो सकता है। इसके अलावा, मानसिक और शारीरिक तनाव भी IVF प्रक्रिया का हिस्सा हो सकते हैं।
IVF प्रक्रिया के दौरान विभिन्न उपचार विकल्पों और चिकित्सा दृष्टिकोणों का पालन करना चाहिए। चिकित्सा सहायता और परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ संस्थानों और सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम भी इस दिशा में मदद कर रहे हैं।
भारत में IVF संबंधित कानून और नियमन भी महत्वपूर्ण हैं। सभी IVF केंद्रों को स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों के दिशानिर्देशों का पालन करना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि मरीजों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्राप्त हों।
ईशा अंबानी द्वारा अपने IVF अनुभव को साझा करने से कई महिलाएं और दंपत्ति प्रोत्साहित होंगे। उनके इस साहसिक कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। यह समाज में बांझपन और IVF के प्रति धारणा को बदलने में सहायक सिद्ध होगा।
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