लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने संसद में यह साफ किया है कि अध्यक्ष को माइक बंद करने का कोई स्विच नहीं दिया गया है। यह बयान विशेष रूप से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी के प्रश्न के जवाब में आया है, जिन्होंने पूछा था कि पेगासस स्पायवेयर मुद्दे पर चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं के माइक क्यों बंद नहीं किए गए।
ओम बिड़ला ने अपनी सफाई में बताया कि अध्यक्ष या प्रेजाइडिंग ऑफिसर के पास व्यक्तिगत माइक को बंद करने की तकनीकी क्षमता नहीं होती है। उन्होंने यह भी बताया कि सदन का संचालन सदस्यगणों के सहयोग पर निर्भर करता है और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि सब मिलकर काम करें।
ओम बिड़ला ने यह भी बताया कि लोकसभा सचिवालय को यह निर्देश दिया गया है कि वे ऐसी प्रणाली की संभावना तलाशें, जिससे अध्यक्ष व्यक्तिगत माइक को नियंत्रित कर सके। यह कदम सदन में बेहतर अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है।
यह वक्तव्य उस समय आया है जब सरकार पर पेगासस स्पायवेयर के उपयोग से विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करने का आरोप लग रहा है। विपक्ष इस मुद्दे पर विस्तारित चर्चा की मांग कर रहा है, और सरकार पर बहस को दबाने का आरोप लगाया जा रहा है।
पेगासस स्पायवेयर विवाद कोई नया नहीं है, और इससे जुड़ी चर्चाएं हमेशा से विवाद का केंद्र रही हैं। विपक्ष का मानना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत सुरक्षा दोनों के लिहाज से एक गंभीर मुद्दा है। हाल ही में कई विपक्षी नेता और पत्रकार इस विवाद की चपेट में आए हैं, जिसे लेकर उनकी निजता और स्वतंत्रता चिंताजनक स्थिति में है।
इससे पहले भी लोकसभा में कई बार विपक्ष द्वारा सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पूरी तरह से निष्प्रभावी करने की कोशिश कर रही है। मगर इस बार मसला थोड़ा अलग है, क्योंकि इसमें पेगासस का नाम जुड़ा है, जो पहले से ही एक विवादित विषय रहा है।
लोकसभा सचिवालय इस दिशा में क्या कदम उठाता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। अगर वाकई माइक को नियंत्रित करने की कोई प्रणाली लगाई जाती है, तो यह व्यवस्था बनाए रखने में कितना कारगर होगा, यह समय ही बताएगा। इस बीच, अध्यक्ष का यह बयान वातावरण को थोड़ा शांत करने में सहायक साबित हो सकता है, लेकिन विपक्ष की मांगें पूरी तरह शांत होती नहीं दिख रही हैं।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र की आत्मा बहस और संवाद में निहित है। अगर सदन में सभी पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं मिलता, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर एक सवालिया निशान हो सकता है। यह जरूरी है कि सरकार और विपक्ष दोनों मिलकर इस मौजूदा स्थिति का समाधान निकालें, ताकि संसद का कामकाज बाधित न हो और जनहित के मुद्दों पर चर्चा हो सके।
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