Navratri 2023 का दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा का पंचांग, शुभ रंग, मुहूर्त और राहु काल

Navratri 2023 का दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा का पंचांग, शुभ रंग, मुहूर्त और राहु काल

पंचांग के मुख्य बिंदु

16 अक्टूबर 2023 को Navratri 2023 का दूसरा दिन था, जो शारदीय नवरा‍त्रि के अंतर्गत आया। इस दिन द्वितीया तिथि (शुक्ल पक्ष) 12:32 एएम से शुरू हुई और अगले दिन तक चली। सूर्य ने 6:22 एएम पर उगते हुए दिन की रोशनी बिखेरी, जबकि 5:51 पीएम पर अस्त हुआ। चंद्रमा 7:39 एएम पर उदय हुआ और 6:45 पीएम को क्षितिज से छिप गया। शका संवत 1945 शोभावक्रित के इस पन्ने में राहु काल शाम 2:15 पीएम से 3:45 पीएम तक था, जिसे धार्मिक कार्यों से बचना चाहिये। इस तिथि पर सूर्य, चंद्रमा और कई ग्रहों की लाभकारी स्थिति ने पूजा‑पाठ, व्रत और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों को अत्यंत शुभ बना दिया।

ब्रह्मचारिणी माँ की पूजा और महत्त्व

ब्रह्मचारिणी माँ की पूजा और महत्त्व

शारदीय नवरा‍त्रि के दूसरे दिन को माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिये समर्पित किया जाता है। यह देवी पार्वती का वह अवतार है, जो अभी तक विवाहित नहीं हुई थीं और अत्यधिक तपस्या में लीन थीं। यह रूप ‘ब्रह्मचर्य’ यानी निरभक्षण और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। मनके अनुसार, वह मंगल (भौतिक समृद्धि) के अधिपति भी हैं, इसलिए भक्त उन्हें शक्ति, ज्ञान और दृढ़ता की प्राप्ति के लिये पूजते हैं।

पूजा विधि में श्वेत वस्त्र, तुलसी, धान, फल, मिठाइयाँ और विशेष ‘त्रिलोक’ ध्वनि वाले तिलक के साथ माँ को अर्पित किए जाते हैं। द्वितीया और तृतीया तिथि के शुभ समय में मन से मंत्रजाप किया जाता है, जैसे ‘ओम् दुर्गायै नमः’ और ‘ओम् ब्रह्मचारिण्यै नमः’। कई घरों में इस दिन व्रती लोग पूरी दिन उपवास रखते हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही उपवास खोलते हैं।

चंद्र दर्शन का विशेष महत्व इस दिन है क्योंकि यह अमावस्या के बाद पहला चाँद देखना है। इस दृश्य को देखकर भक्त मानते हैं कि वे शुद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करेंगे। इसलिए कई परिवार सुबह जल्दी उठकर जलाशयों, तालाब या नदियों की ओर जाते हैं, जहाँ से वे साफ़ पानी में चाँद को प्रतिबिंबित देखते हैं।

पूरा नवरा‍त्रि समारोह 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक चलता है, जिसमें प्रत्येक दिन दुर्गा माँ के एक अलग रूप को समर्पित किया जाता है—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। शरद ऋतु में यह नौ‑दिवसीय उत्सव सबसे प्रमुख माना जाता है, क्योंकि यह मौसम की सर्दी से पहले की ताजगी और आध्यात्मिक उन्नति का समय होता है।

ज्योतात्‍मिक दृष्टिकोण से इस दिन को कई ग्रहों की सकारात्मक स्थिति ने आशीर्वाद दिया है। शुक्ल द्वितीया, तृतीया और मंगल की योग प्रदान करते हैं कि इस दिन के मुहूर्त में किए गए धार्मिक कर्म जल्दी सफलता और शांति लाते हैं। विशेष रूप से जो लोग व्रत रख रहे हैं या दुर्गा पूजा में भाग ले रहे हैं, उनके लिये यह दिन शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप में लाभदायक माना जाता है।

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