भारत में लंबे समय से चुनाव सुधारों की जरूरत महसूस की जा रही है। अब, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। 18 सितंबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को हरी झंडी दी गई। इस फैसले का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है, जिससे देश में लगातार चुनावी खर्चों और प्रशासनिक भार को कम किया जा सके।
यह निर्णय एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के बाद लिया गया है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की थी। इस समिति का गठन 2023 में किया गया था और इसका प्रमुख कार्य देश में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहारिकता की जांच करना था। समिति ने एक दो-स्तरीय कार्य योजना दी है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाएंगे, और दूसरे चरण में नगरपालिका और पंचायत चुनावों को पहले चरण के 100 दिनों के भीतर आयोजित किया जाएगा।
इस योजना को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। पहले चरण के संवैधानिक संशोधनों के लिए राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी, लेकिन दूसरे चरण के लिए आधे से अधिक राज्यों की स्वीकृति आवश्यक होगी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, इस मुद्दे पर विशेष रूप से युवाओं में भारी समर्थन देखा गया है, जिसमें 80% से अधिक लोगों ने इसे समर्थन दिया है।
हालांकि, इस प्रस्ताव की विपक्षी दलों ने आलोचना की है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे 'व्यावहारिक नहीं' और आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक 'चुनावी गिमिक' करार दिया है। प्रस्ताव को लागू करने की प्रक्रिया लंबी और मुश्किल होगी और इसके लिए विभिन्न दलों की सहमति की आवश्यकता होगी। बीजेपी के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में दो-तिहाई बहुमत नहीं है, इसलिए विपक्ष के साथ संवाद और समन्वय आवश्यक होगा।
प्रस्ताव को लागू करने के लिए करीब 18 संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी का मानना है कि यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार इस प्रस्ताव को कानून के रूप में संसद में पेश करेगी और क्या इसे समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जाएगा। इस प्रस्ताव का वांछित परिणाम हासिल करने के लिए सकारात्मक सोच और राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होगी।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' के प्रस्ताव से देश में लोकतंत्र और प्रशासन में नई ऊर्जा का संचार हो सकता है। लगातार चुनावों के बजाय, एक साथ चुनाव होना समय और संसाधनों की बचत कर सकता है। इससे प्रशासनिक कामकाज में स्थिरता आ सकती है और सरकारों को अपने पूरे कार्यकाल में सुचारू रूप से विकास कार्य करने का मौका मिल सकता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि किस प्रकार से यह प्रस्ताव देश के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा स्वीकार किया जाता है या नहीं। 'वन नेशन, वन इलेक्शन' की अवधारणा को साकार करना एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन यदि इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता है, तो यह भारत के लोकतंत्र और चुनावी प्रणाली के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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