संयुक्त राज्य ने 19 सितंबर 2025 तक स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के ग्लोबल वॉल्केनिस्म प्रोग्राम की रिपोर्ट के अनुसार 165 होलोसीन ज्वालामुखियों के साथ विश्व का सबसे ज्वालामुखीय सक्रिय देश बना रह गया है। भारत में कई लोग इसी आँकड़े को देख चौंकिएगा, क्योंकि इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 44 ज्वालामुखी एक साथ अभी भी फूट रहे हैं, जिसमें इंडोनेशिया के आठ ज्वालामुखी सबसे अधिक हैं। यह खबर हमारे दैनिक जीवन से सीधे जुड़ी है – हवाई अड्डों के रोके‑रोके, वैमानिक मार्गों के पुनः‑निर्धारित करने से लेकर स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य तक का असर पढ़ा‑जा‑रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, जापान दूसरे स्थान पर 118 होलोसीन ज्वालामुखियों के साथ है, जबकि रूसी Federation तीसरे क्रम में 107 ज्वालामुखियों के साथ आया। इन देशों में से, जापान में क़िरिशिमायामा, ऐरा और सुवानोसेजीमा वर्तमान में सक्रिय हैं। रूसी फ़्रंट पर, द्वीप कामचत्का प्रायद्वीप के क्राशेन्निकोव, कैर्यम्स्की, बेज़िमियानी और शेवेलुच लगातार धुआँ फेंक रहे हैं।
अमेरिका के दो ज्वालामुखी – किलाउए (हवाई) और ग्रेट सिटकिन (अलास्का) – अभी भी निरंतर फटते हुए दिखाई दे रहे हैं। किलाउए की विस्फोटक शक्ति 2022 में हुई सर्वाधिक विस्फोट की तुलना में कम है, लेकिन एरोड्रोनिकल मॉन्सिटरिंग सेंटर के डेटा से पता चलता है कि इस वर्ष की पहले छमाही में SO₂ उत्सर्जन 0.8 Mt से अधिक रहा। ग्रेट सिटकिन पर ध्वनि तरंगें अक्सर एल्युशन के साथ मिलती‑जुलती हैं, जिससे अलास्का के स्थानीय लोग एयर क्वालिटी अडवाइज़री पर नजर रखते हैं।
इंडोनेशिया ने कुल 101 होलोसीन ज्वालामुखियों के साथ चौथे स्थान पर होने के बावजूद, इस साल आठ ज्वालामुखी एक साथ फूट रहे हैं – रौंग, लेवोतोलोक, लेवोतोबी, मारापी, मेरापी, सेमेरु, इबु और डुकोनो। इन में से सबसे तीव्र रौंग का विस्फोट 13 मार्च 2025 को शुरू हुआ, और अंतरराष्ट्रीय ज्वालामुखी निगरानी एजेंसी (INNAG) के अनुसार विस्फोट की तीव्रता ‘इक्वेटोरियल’ श्रेणी में आती है।
इंडोनेशिया के ज्वालामुखीय सक्रियता का सीधा असर नेशनल डिसास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (BNPB) ने कहा कि अगले दो हफ्ते में पवन‑धूल के मिश्रण से उड़ान प्रबंधक पर काफी दबाव बन सकता है।
चिली, इथियोपिया, पापुआ न्यू गिनी, इक्वाडोर, मैक्सिको और आइसलैंड जैसे देशों में ज्वालामुखी के इतिहासिक आँकड़े हैं, लेकिन इस वर्ष उनमें से कोई भी सक्रिय नहीं रहा, सिवाय इथियोपिया के एरता अले के, जो निरंतर धुआँ फेंक रहा है। पापुआ न्यू गिनी के उलावुन, मनाम, लांगिला और बगाना की निरंतर फटने की स्थिति स्थानीय कृषक वर्ग को मौसमी फसल नुकसान का जोखिम पैदा कर रही है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि 1950 के बाद से केवल 42 ज्वालामुखी ही लगातार सक्रिय रहे हैं, इसलिए अधिकांश ज्वालामुखी अभी भी ‘नींद’ अवस्था में हैं। जियोफिज़िकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेलग्रेड के प्रो. मिरकोविच ने कहा कि “वर्तमान में सक्रिय ज्वालामुखी की संख्या के आधार पर, अगले 5‑10 वर्षों में नई विस्फोटकारी श्रृंखलाओं का उभरना संभव है, खासकर टेक्टोनिक प्लेट बॉर्डरों पर।” इंडोनेशिया में नई फटने वाली वनों की गति देख रहे पर्यावरण गैर‑सरकारी संगठनों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि ड्यूरेटिक गैसें और जलवायु परिवर्तन का छल्ला एक‑दूसरे को तेज़ कर रहा है।
किलाउए के सतत SO₂ उत्सर्जन ने हवाई में कुछ एयरपोर्ट पर अस्थायी लैंडिंग प्रतिबंध लगाए हैं। एअरलाइनों ने वैकल्पिक रूट का उपयोग किया है, इसलिए यात्रियों को छोटे‑छोटे बदलावों का सामना करना पड़ रहा है।
इंडोनेशिया की प्रचंड टेक्टोनिक बाउंडरी, विशेषकर इन्डो-ऑस्ट्रालियन प्लेट, लगातार तनाव का कारण बन रही है। 2024‑2025 के बीच कई मैग्मा चैंबर्स ने ऊर्जा जमा कर ली, जिससे एक साथ कई विस्फोट हो रहे हैं।
कैर्यम्स्की और शेवेलुच जैसे ज्वालामुखी टूरिस्ट क्षेत्रों के पास स्थित हैं, इसलिए स्थानीय निकासी योजनाएँ अपडेट की गई हैं। अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों पर थंडरस्टॉर्म अलर्ट जारी किया गया है, पर अभी तक बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय प्रभाव नहीं देखा गया।
स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन की यह इकाई विश्व भर के ज्वालामुखी मॉनिटरिंग एजेंसियों के साथ डेटा शेयर करती है। वैज्ञानिक पेपर्स में इसे एक मानक स्रोत माना जाता है, लेकिन छोटे‑छोटे द्वीप‑राष्ट्रों के रिपोर्टिंग में कभी‑कभी अंतर रहता है।
ARPITA DAS
6 10 25 / 02:55 पूर्वाह्नवर्तमान ज्वालामुखीय आँकड़े निस्संदेह पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक मंच पर एक दावेदारी निर्माण करते हैं, परन्तु यह भी समझना आवश्यक है कि इस आँकड़े को चयनित एलाइट संस्थाओं द्वारा संचालित “ग्लोबल वॉल्कैनिस्म” प्रोग्राम का प्रतिपादन किया गया है।
क्या आप कभी सोचे हैं कि इन डेटा को कुछ विशेष एजेण्डा की सेवा में मोड़ने की संभावना नहीं है? यह विचार जागरूकता के सतह पर अत्यंत नाटकीय है।
भले ही रिपोर्ट के अंक शाब्दिक रूप से सटीक लगें, परंतु सूचना के चयन में गुप्त कारण अथवा छुपी हुई धारा भी हो सकती है।
इसलिए हमें यह विवेचना करनी चाहिए कि कौन‑से एलिट निकाय इस प्रवाह को मार्गदर्शन दे रहे हैं।