साल 2025 की बिहार अधिकार यात्रा 16 से 20 सितम्बर तक कई जिलों में चलती रही, और Madhepura में Tejashwi Yadav ने एक अनोखा राजनीतिक कदम उठाया। उन्होंने शान्तनु बुनडेला, शारद यादव के बेटे, को अपनी गाड़ी पर बैठाया। इस कदम को सीधे तौर पर सोशलिस्ट नेताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश माना गया, क्योंकि शारद यादव का सामाजिक विचारधारा बिहार की राजनीति में अभी भी प्रभावशाली है।
शान्तनु को प्रमुख भूमिका में दिखाना केवल एक प्रतीकात्मक इशारा नहीं, बल्कि संभावित सीट‑शेयरिंग और गठबंधन के नए मानचित्र को सजाने का प्रयास था। इससे यह सवाल उठता है कि क्या RJD अब सामाजिक वर्ग के साथ मिलकर नए गठबंधन की दिशा में बढ़ेगा, या यह सिर्फ चुनावी समय में ही उठाया गया एक चालाकी भरा कदम है।
Madhepura और Bihariganj के स्थानीय RJD कार्यकर्ता इस कदम से असहज महसूस कर रहे हैं। कई बड़ों ने पहले ही इन क्षेत्रों में टिकट की उम्मीदें जताई हैं, और अब शान्तनु बुनडेला की उपस्थिति से उनके दावे धुंधले हो रहे हैं। पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ नेता अब टेनशन में हैं कि क्या उन्हें पार्टी के मुख्य टिकटों से बाहर कर दिया जाएगा या नई गठबंधन के हिस्से के रूप में उनका कोई सहयोगी स्थान मिलेगा।
कोई भी अनिश्चितता चुनावी माहौल को जटिल बना देती है। इंडिया ब्लॉक की रणनीति अभी भी तैयार हो रही है, और सीट बंटवारे की अंतिम रूपरेखा अभी तय नहीं हुई है। इस बीच, Tejashwi Yadav ने अपने आप को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्थापित किया है, और अब उन्हें यह दिखाना होगा कि वह सामाजिक वर्गों को भी जोड़कर अपनी जीत की संभावना को बढ़ा सकते हैं।
समाज में कास्ट‑इक्वेशन और पुरानी गठबंधनों का असर अभी भी राजनीतिक समीकरणों में गहरा है। शान्तनु बुनडेला की इस समावेशी पहल से यह स्पष्ट होता है कि Tejashwi Yadav सामाजिक वर्गों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि RJD की पारंपरिक वोट बैंक से आगे निकलकर एक व्यापक समर्थन हासिल किया जा सके।
जैसे-जैसे चुनाव के दायरे में घटते हुए प्रश्नों का हल निकाला जाएगा, यह देखना रोचक रहेगा कि शान्तनु बुनडेला का इस यात्रा में शामिल होना वास्तव में RJD के भीतर नई ताकतें पैदा करेगा या मौजूदा तनाव को बढ़ाएगा।
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