भारत एक ऐसा देश है जहां हर दिन कोई न कोई पर्व या उत्सव मनाया जाता है। ऐसा ही एक विशेष मौका होता है तुलसी विवाह का, जो प्रत्येक वर्ष देवउठनी एकादशी के अगले दिन मनाया जाता है। इस वर्ष, तुलसी विवाह 2024 का आयोजन 13 नवंबर को हो रहा है। इस दिन भक्त शालिग्राम जी और तुलसी माता के विवाह का उत्सव मनाते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का साधन भी है।
तुलसी विवाह की कथा विशेष रूप से हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेखनीय है। यह कथा वृंदा नामक बेहद पतिव्रता स्त्री की है, जो राक्षसराज जलंधर की पत्नी थी। वृंदा की पतिव्रता धर्म के कारण जलंधर को अजेयता प्राप्त हो गई थी। देवता उसे हराने में असमर्थ थे। तब भगवान विष्णु ने वृंदा की विद्धता को धूमिल करने के लिए जलंधर का रूप धारण किया, जिससे वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया। इसके परिणामस्वरूप, जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और अंततः भगवान शिव द्वारा उसका वध कर दिया गया।
जब वृंदा को भगवान विष्णु की इस छल का पता चला, तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। श्राप स्वीकार करते हुए, भगवान विष्णु एक शालिग्राम शिला में परिवर्तित हो गए। देवताओं और देवी देवियों ने वृंदा से इस श्राप को वापस लेने की प्रार्थना की, परंतु वृंदा ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। वृंदा के अवशेषों से एक तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने वचन दिया कि वृंदा, तुलसी के रूप में, हमेशा उनके साथ रहेंगी। इसीलिए तुलसी विवाह परम पावन माना जाता है और यह शालिग्राम जी और तुलसी माता के विवाह के रूप में मनाया जाता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में तुलसी विवाह को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस शुभ दिन पर श्रद्धालु तुलसी चौरा को सजाते हैं। विवाह की तरह ही तुलसी की पूजा की जाती है और सिंदूर, चूड़ियाँ, वस्त्र और अन्य गहनों से सजी जाती है। शालिग्राम जी को सजाया जाता है और उनका मिलन तुलसी माता के साथ किया जाता है। इस विवाह आयोजन में भजन-कीर्तन होते हैं और विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
इस दिन भक्त घरों में विशेष पूजा का आयोजन करते हैं और तुलसी माता की पूजा करते हैं। इस पूजा में आरती, मंत्रोचारण और प्रसाद का वितरण शामिल होता है। तुलसी माला और तुलसी के पत्तों को विशेष महत्व दिया जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि तुलसी विवाह में शामिल होने से उन्हें सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तुलसी विवाह का उल्लेख अनेक धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इसे एक ऐसा दिन माना जाता है जब भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि जो लोग इस पूजा में भाग लेते हैं, उनके घर में हमेशा शांति और समृद्धि का वास होता है। तुलसी को जीवन वर्धक मानते हुए, इसे औषधीय गुणों का खजाना माना गया है। यह कई धार्मिक अनुष्ठानों में आवश्यक होती है और इसे 'विष्णुप्रिय' कहा जाता है क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
तुलसी विवाह का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह हमारे अंदर त्याग और समर्पण के भाव को जागृत करता है। वृंदा के चरित्र की असाधारण निश्चलता और उनके द्वारा भगवान के प्रति किए गए त्याग को समझना हमारे लिए अध्यात्मिक रूप से बेहद शिक्षाप्रद है। यह पर्व हम सभी को जीव-जंतुओं और प्रकृति से प्रेम करने की प्रेरणा देता है, क्योंकि तुलसी के पौधे का हमारे जीवन में विशेष स्थान है।
तुलसी विवाह रिवाजों और परंपराओं का प्रतीक है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। विवाह का यह प्रतीकात्मक आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए इस पर्व के महत्व को दर्शाने का सर्वोत्तम तरीका है। यह पर्व परिवारों को जोड़ने, आपसी संबंधों को मजबूत करने और समाज में एकता की भावना को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी विवाह का आयोजन कर लोग अपने घरों में सौभाग्य का स्वागत करते हैं। इस उत्सव में महिलाएं, विशेष रूप से, बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं और तुलसी विवाह का आयोजन पूरी श्रद्धा से करती हैं। उनका विश्वास होता है कि इससे उनके जीवन में सुख-संपदा, शांति और आनंद बना रहता है।
तुलसी विवाह के समारोह में न केवल पूजा-पाठ और भक्ति होती है, बल्कि यह लोगों को एक मंच पर लाने का साधन भी होता है। इस तरह के धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन हमारे समाज के ताने-बाने को मजबूत बनाते हैं और हमें हमारी संस्कृति को जीवित बनाये रखने की प्रेरणा देते हैं। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह में भाग लेने से भक्तों को व्यावहारिक जीवन में अनेक प्रकार की सफलताओं का अनुभव होता है।
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