आपने कभी सोचा है कि हर साल कितनी रकम हमारे थालियों से निकल जाती है? 2024 विश्व खाद्य दिवस ने इस सवाल को फिर से उठाया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग ₹92,000 करोड़ का खाद्य अपव्यय होता है। ये सिर्फ संख्या नहीं, यह हमारे समाज, अर्थव्यवस्था और भविष्य की सुरक्षा को सीधे प्रभावित करता है।
मुख्य कारणों में से एक है बख़़्त में हो रही खराबी। कई बार बाजार में तैयार सामान को एक ही दिन में बेचने की कोशिश की जाती है, जिससे बहुत सारा खाना बेमते हुआ। साथ ही बेकार की पैकेजिंग, बड़ी मात्रा में उत्पादन और बेकार का वितरण भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। छोटे-छोटे रेस्टोरेंट, स्कूल कैंटीन और बड़े सुपरमार्केट अक्सर बचे हुए भोजन को फेंक देते हैं, बजाय इसे पुनः उपयोग या दान करने के।
जब ₹92,000 करोड़ हर साल बर्बाद होते हैं, तो हमारे राष्ट्रीय खजाने में एक बड़ा छोटा छेद बनता है। यह रकम अगर सही ढंग से इस्तेमाल होती तो गरीबी कम करने, शिक्षा या स्वास्थ्य में निवेश किया जा सकता था। साथ ही खाद्य अपव्यय से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है—खाद्य उत्पादन में पानी, ऊर्जा और भूमि का बहुत सारा संसाधन गंवाया जाता है।
समाधान काफी आसान है, बस कुछ बदलावों से फर्क पड़ता है। घर में भोजन को सही तरीके से संजोकर रखें, बचा हुआ खाना अगले दिन लेंगे या दान करें। रेस्टोरेंट और कैंटीन को बचे हुए खाने को रीसायकल या दान करने की नीति अपनानी चाहिए। सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए जो कंपनियों को अपव्यय कम करने के लिए प्रेरित करें, जैसे कि टैक्स रिबेट या सर्टिफ़िकेशन।
एक और छोटा कदम जो सभी कर सकते हैं, वह है ‘खाली प्लेट’ चैलेंज – एक दिन ऐसी कोशिश करें कि आप अपने भोजन को पूरी तरह खत्म कर दें। इससे न केवल व्यक्तिगत खर्च कम होता है, बल्कि अपव्यय की सोच भी बदलती है।
भविष्य में अगर हम इस अपव्यय को नियंत्रित कर पाएँ, तो न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि सामाजिक सुरक्षा भी मजबूत होगी। आपके छोटे-छोटे कदम बड़े बदलाव की नींव रख सकते हैं। तो अगली बार जब आप खरीदारी करें, तो जरूरत के हिसाब से ही लें और बचे हुए को बचाने की कोशिश करें। यही हमारा सामाजिक और आर्थिक दायित्व है।
विश्व खाद्य दिवस 2024 के मौके पर भारत के खाद्य अपव्यय के खतरनाक आंकड़े पर रोशनी डाली गई है। भारत हर साल लगभग ₹92,000 करोड़ का खाद्य अपव्यय देखता है, जिससे खाद्य सुरक्षा और स्थिरता के लिए बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए जागरूकता आवश्यक है जिससे भोजन की कद्र और अपव्यय में कमी लाई जा सके।
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