दिवाली – रोशनी, खुशी और नई शुरुआत का त्यौहार

जब नवंबर में शीतल हवा चलने लगे, तो हर घर में दीप जलते हैं, मिठाइयाँ बनती हैं और सड़कों पर रौशनियां छतों को छिपा लेती हैं। यही है दिवाली, भारत का सबसे बड़ा प्रकाश‑पर्व। लेकिन बहुत से लोग इसे सिर्फ शॉपिंग और पटाखे तक सीमित समझते हैं। असल में दिवाली का इतिहास, रिवाज़ और मतलब बहुत गहरा है – चलिए इसे एक-एक करके समझते हैं।

दिवाली का इतिहास और पौराणिक कहानी

दिवाली दो मुख्य कहानियों से जुड़ी है। पहली – रामायण से, जब भगवान राम, 14 साल के वनवास के बाद लंका पर विजय पाकर अयोध्या लौटे और रावण के अधीन लोग फिर से सुखी हो गए। शहर के लोग रावण के लूटे हुए ख़जाने को भूलकर गैलों की रोशनी से स्वागत किया। दूसरा – महावीर जयंती से, जब महावीर स्वामी ने 2 महीने तक रथ पर नहीं बैठा और शाक्य को रोशनी से भर दिया। इन कहानियों से यह सिखाया गया कि अंधकार के बाद हमेशा रोशनी आती है।

दिवाली की तैयारियां – घर से लेकर बाहर तक

दिवाली की तैयारी में सबसे पहला कदम है साफ‑सफ़ाई। घर को पूरा झाड़‑फूंक कर साफ‑सुथरा किया जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि साफ घर में खुशियाँ आती हैं। फिर आते हैं दिवाली के रंग‑बिरंगे लाइट्स, दीवाली के लिए खास पीले‑सुनहरे रंग के रंग, और सबसे महत्वपूर्ण – नए कपड़े। सब लोग नया कपड़ा पहनते हैं, क्योंकि नया पहनावा नई ऊर्जा का प्रतीक है।

खाने‑पीने की बात करे तो मिठाइयाँ जैसे लड्डू, बर्फी, काजू कतली और पकोड़ा सबसे लोकप्रिय हैं। अगर आप थोड़ी हेल्दी विकल्प चाहते हैं, तो गुड़‑की‑चटनी, मेवा‑बादाम का मिश्रण और सादी शर्बत भी लायक हैं। कई लोग अपने पड़ोसियों के साथ मिठाइयाँ बांटते हैं, जिससे रिश्ते मजबूत होते हैं।

पेट्रोल और पटाखे भी दिवाली का अहम हिस्सा होते हैं, पर अब बेफ़ायदा धूमधाम से बचने के लिए इको‑फ्रेंडली पटाखे या फायर‑वर्क्स का उपयोग बढ़ रहा है। अगर आप सुरक्षित रहना चाहते हैं, तो बाहर जलाने वाले उपकरणों को खुली जगह पर रखें और बच्चों को दूर रखें।

कुछ लोग दिवाली को धार्मिक कार्यों से जोड़ते हैं – यह आयुर्वेदिक तेलों से घर साफ़ करना, भगवान की पूजा‑अर्चना, और दान‑परोपकार करना शामिल है। यदि आप इस साल पहली बार पूजा करना चाहते हैं, तो बस एक छोटी थाली में चंदन, रोशनी, और फल रखें और उन पर हाथ जोड़ें। यह सरल रिवाज़ आपके घर में शांति लाएगा।

दिवाली सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि पाँच दिनों का महापर्व है – बिगुती (कुत्तों के लिए) से लेकर गोवर्धन पूजा तक। हर दिन का अपना महत्व है और आप इन सभी को एक छोटे सा प्लान बनाकर आसानी से प्रबंधित कर सकते हैं।

समाज में बदलते समय के साथ, दिवाली का अर्थ भी थोड़ा बदल रहा है। अब लोग पर्यावरण‑सुरक्षित सामग्री, नवीकरणीय ऊर्जा, और सामाजिक जिम्मेदारी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यह एक नया आयाम जोड़ता है – रोशनी का त्यौहार अब सिर्फ चमक नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है।

तो अगली बार जब आप दीयों की रौशनी देखेंगे, तो याद रखिए – यह अंधकार को हराने, खुशियों को लाने और नई शुरुआत का प्रतीक है। अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर उत्सव को सुरक्षित, खुशहाल और यादगार बनाइए। शुभ दीपावली!

प्रधानमंत्री मोदी का कच्छ में सैनिकों के साथ दिवाली उत्सव: सीमा सुरक्षा पर विशेष ध्यान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 की दिवाली को कच्छ, गुजरात में भारत-पाक सीमा के निकट सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), सेना और अन्य सशस्त्र बलों के कर्मियों के साथ मनाया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने भारत की सीमाओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि देश अपनी भूमि का एक इंच भी समझौता नहीं करेगा। उनके इस दौरे ने कच्छ क्षेत्र की रणनीतिक महत्व को रेखांकित किया और भारत सरकार की सीमाओं की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया।

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