दुर्गा – पूजा, इतिहास और आज के रिवाज

जब बात दुर्जा की आती है, तो मन में शक्ति, ममता और विजय की छवि झलकती है। दुर्गा, हिंदू धर्म की प्रमुख देवी, जो शत्रु दैत्य महिषासुर को हराने वाली शक्ति का प्रतीक है. Also known as देवी दुर्गा, वह भारत के कई हिस्सों में भक्तों की राष्ट्रीय प्रतीक बनी हुई है।

दुर्गा का सबसे प्रसिद्ध स्वरूप नवरात्रि में देखने को मिलता है। नवरात्रि, नौ रातों का तीव्र उत्सव, जहाँ दुर्गा के नौ विविध रूपों की पूजा की जाती है. इस दौरान धूमधाम, ढोल-नगाड़े, और रंग-बिरंगे मंच सजाते हैं, जिससे दुर्गा के हर रूप की कहानी जीवित होती है। नवरात्रि न केवल धार्मिक पहलू है, बल्कि सामाजिक एकता का भी पुल बनाती है।

दुर्गा की पूजा विधि (पूजा विधि) भी खास़ है—हर घर में हलके-फुल्के औज़र से लेकर बड़े मंदिरों में विस्तृत अनुष्ठान होते हैं। पूजा विधि, धार्मिक अनुष्ठान जिसमें मंत्र, ध्वज, कलश, और प्रसाद को शामिल किया जाता है. शुरुआती चरण में कलश स्थापित किया जाता है, फिर कलश को जल, कोयले और शंख से सजाया जाता है। अगला चरण ‘अर्नव’ (शक्ति) को बुलाता है, जहाँ भाग्यशाली निर्मल शब्द और ध्वनि से देवी को आमंत्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान परिवार के सभी सदस्य मिलकर गीत गाते हैं, जिससे उत्सव में सामंजस्य बनता है।

दुर्गा के कई रूप हैं—एक तरफ काली, जो भयावहता का प्रतीक है, और दूसरी तरफ महालक्षा, जो समृद्धि लाती है। काली दुर्गा की लाली आंखें, दंड और निलंबित जीभ दर्शाती है कि वह बुराई को उखाड़ फेंकेगी। महालक्षा देवी के साथ जुड़ी हुई है—उसके हाथ में धनुष और बाण शक्ति और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये विविधताएँ यह दर्शाती हैं कि दुर्गा केवल एक रूप नहीं, बल्कि कई स्वरूपों में समाई हुई है, जो अलग-अलग जरूरतों को पूरा करती है।

भारत में दुर्गा का सामाजिक प्रभाव गहरा है। गांव-शहर के त्योहार में लोग एक साथ मिलकर बनाते हैं मिठाई, सजाते हैं पंडाल, और दान देते हैं। ये दानशीलता सामुदायिक बंधन को मजबूत करती है। साथ ही, दुर्गा की कहानियों को सुनाकर बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाए जाते हैं—धैर्य, साहस और न्याय की भावना। इस प्रकार दुर्गा के उत्सव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक शिक्षा का एक अहम स्रोत बनते हैं।

क्षेत्रीय रूप से दुर्गा पूजा में विविधताएँ देखने को मिलती हैं। पश्चिम बङ्गाल में सच्ची पूजा (संध्या आरती) होते हैं, जबकि गुजरात में दुर्गा तपस्या के दौरान व्रत रखे जाते हैं। बर्मा में दुर्गा को ‘बाथर्मा’ कहा जाता है और यहाँ पर उसे वन में स्थापित करके पवन वायु के साथ पूजा करते हैं। इन क्षेत्रों में अलग-अलग व्रत, आरती और नृत्य शैली दुर्गा के व्यापक प्रभाव को स्पष्ट करती हैं।

आधुनिक समय में दुर्गा का सम्मान डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर भी बढ़ रहा है। सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण, मोबाइल ऐप्स पर रीतियों की गाइड और वर्चुअल पंडालों के माध्यम से युवा पीढ़ी भी इस परम्परा में शामिल हो रही है। इस बदलाव से दुर्गा की कहानी नई पीढ़ी तक प्रभावी ढंग से पहुंच रही है, जबकि मूल आध्यात्मिक भावना बरकरार रहती है। अब आप इस पेज पर नीचे दी गई लेखों में दुर्गा से जुड़ी ताज़ा ख़बरें, पूजा की विस्तृत जानकारी, और नवरात्रि के रोमांचक अपडेट पाएँगे।

अशाढ़ गुप्त नवरात्रि 2025: दुर्गा के छिपे रूपों का नौ‑दिवसीय पूजा

अशाढ़ में शुरू हुई गुप्त नवरात्रि 2025 दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नौ‑दिवसीय तीव्र साधना है। यह ‘छिपा’ नवरात्रि बाहरी उत्सव की बजाय आंतरिक ध्यान और उपवास पर केंद्रित है। 26 जून को घटस्थापन से शुरू होकर 4 जुलाई को पराना तक, प्रत्येक दिन एक अलग महाविद्या को सम्मानित किया जाता है। तंत्र साधकों और आराधकों के लिए यह समय मन की शुद्धि और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है।

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