तुलसी विवाह: पूजा विधि और महत्व

तुलसी विवाह नवरात्रि के अंतिम दिन मनाया जाने वाला एक खास हिन्दू संस्कार है। इस दिन तुक़ी लत्‍की (तुलसी) को शालिग्रम या भगवान विष्णु के साथ बंधा कर शादी जैसा समारोह किया जाता है। इसे नवरात्रि का समापन और हरियाली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। अगर आप पहली बार यह रिवाज़ कर रहे हैं तो घबराएँ नहीं, नीचे दी गई आसान स्टेप‑बाय‑स्टेप गाइड आपकी मदद करेगी।

तारीख, समय और स्थान

तुलसी विवाह आमतौर पर नवरात्रि के नवमी या द्वादशी को, शाम के सात बजकर दो बजे (विष्णु संध्या) से शुरू होता है। ग्राम या घर के आँगन में साफ‑सुथरा जगह चुनें, जहाँ आप अर्चना, पवित्र जल और फल‑फूल रख सकें। अगर आप शहरी इलाके में रहते हैं तो बालकनी या छोटे बगीचे को भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

मुख्य विधि और जरूरी सामग्री

1. तुलसी की तैयारी: तुलसी के पौधे को अच्छे से साफ करें, पत्ते और टहनी को धूप में सुखा लें। इसके पत्ते को पूजा थाली में रखें। 2. शालिग्रम (शिविराग्रम): यह शिंगारी या पत्थर का छोटा टुकड़ा हो सकता है, जिस पर विष्णु भगवान का प्रतीक लिखें। 3. पुजा सामग्री: धूप, दीपक, नैवेद्य (मिठाई, फल, नारियल), अक्षर (अगरबत्ती), संगमरमर की थाली, कुमकुम और अक्षर के साथ शुद्ध जल। 4. विवाह मंत्र: "ॐ श्रीविष्णु सहस्रनाम तुश्मा तुलसीवृन्दे नम:" को कई बार पढ़ें, जिससे माहौल पवित्र रहे। 5. विवाह प्रक्रिया: • पहले तुलसी को पवित्र जल से स्नान कराएं। • उसके बाद तुलसी को कुमकुम और अक्षर से सजाएँ। • शालिग्रम को हल्का धूप झोंकें और उसे भी जल व कुमकुम से पवित्र करें। • दोनो को एकत्रित करके पान (अर्थात् ‘गंध’) से बंधें, जैसे दूल्हा‑दुल्हन के बीच पल्ला बांधा जाता है। • फिर मंत्रों के साथ शुभकामनाएँ दें और शार्दूल (स्वादिष्ट) नैवेद्य अर्पित करें। • अंत में दोनों को आशीर्वाद देते हुए, मिठाई बाँटें। 6. आशीर्वाद और प्रसाद: शुरुआत में बुजुर्ग या पंडित से आशीर्वाद लें, फिर सभी को प्रसाद बाँटें। यह प्रसाद आपके घर में सुख‑समृद्धि लाता है।

तुलसी विवाह के बाद, घर में तुलसी का पौधा अनिवार्य रूप से रखें। माना जाता है कि इससे स्वास्थ्य, परिवारिक शांति और आर्थिक समृद्धि बढ़ती है। कई लोग इसे ‘गौतम के पुत्र’ के रूप में भी समझते हैं, क्योंकि तुलसी को शुद्धता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

यदि आप शहर में रहते हैं और पूजा के लिए जगह सीमित है, तो छोटे कंटेनर में तुलसी लगाकर भी वही विधि लागू की जा सकती है। बस ध्यान रखें कि पौधा हमेशा हरा-भरा रहे और पानी नियमित रूप से दिया जाए।

आखिर में, याद रखें कि तुलसी विवाह सिर्फ एक रिवाज़ नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक कदम है जो हमें प्रकृति और भगवान के साथ जुड़ने का मौका देता है। इसे दिल से मनाएँ, ख़ुशियों की बहार आपके घर में आएगी।

तुलसी विवाह 2024: शालिग्राम जी और तुलसी माता के पवित्र मिलन की कहानी और महत्व

तुलसी विवाह 2024 का पर्व 13 नवंबर को मनाया जाएगा, जो शालिग्राम जी और तुलसी माता के विवाह का उत्सव है। यह पर्व हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कथा वृंदा और जलंधर की है, जिसे भगवान विष्णु ने अपनी माया से पराजित कर दिया था। इस घटना के बाद तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।

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