भारत हमेशा से अपना स्थान अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत बनाने की कोशिश में लगा रहा है। आजकल के समय में हर बड़ा फैसला सीधे हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी पर असर डालता है—चाहे वो तेल की कीमत हो या विदेश में पढ़ाई के अवसर। इसलिए ये पेज आपके लिए एक ऐसी जगह बनाता है जहाँ आप जल्दी‑से‑जल्दी विदेश नीति से जुड़ी ख़बरें पढ़ सकें, समझ सकें और अपना राय बना सकें।
पिछले महीने चीन की ‘चीन प्लस वन’ रणनीति ने निवेशकों की नज़रें भारत की ओर मोड़ दीं। कई कंपनियां अब भारत को चीन की गिरती साख का विकल्प बना रही हैं, पर इसका मतलब सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि सप्लाई चेन को फिर से डिज़ाइन करना भी है। इसी तरह, अमेरिका‑रूस की संभावित वार्ता को लेकर शेयर बाजार में हल्की कमी आई, क्योंकि निवेशक समझ नहीं पा रहे थे कि इस बात का असर हमारे तेल और गैस इम्पोर्ट पर क्या पड़ेगा। इन दो बड़े बड़े सवालों के बीच, पाकिस्तान के साथ संबंध भी लगातार बदलते रहे—पहलगा में हुए आतंकवादी हमले के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने शांति की बात कहीं, लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उस पर सवाल उठाए।
इन सब ख़बरों का एक ही फोकस है: भारत कैसे अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखेगा और साथ ही आर्थिक विकास को भी तेज़ी से आगे बढ़ाएगा। अगर आप अपने दोस्त या रिश्तेदार को समझाना चाहते हैं कि विदेश नीति सिर्फ राजनयिक शब्दों में नहीं, बल्कि रोज़ की कीमतों, रोजगार और पढ़ाई में भी गहराई से जुड़ी है, तो ये बिंदु मददगार रहेंगे।
आगे देखते हुए, दो बड़े ट्रेंड दिख रहे हैं। पहला, एशिया‑पैसिफ़िक देशों के साथ नई साझेदारी—जैसे कि हाल ही में अफगानिस्तान की एशिया कप टीम की घोषणा में भी भारत की भागीदारी की बात छिपी थी। दूसरा, टेक्नोलॉजी और क्लीन एनर्जी सेक्टर में निवेश का बढ़ता चलन। अगर भारत ग्रीन ग्रोथ को अपनी विदेश नीति में प्राथमिकता देता है, तो हमें विदेशी फंडिंग और तकनीकी हस्तांतरण में आसानी होगी।
सरकारी नीतियां बदल रही हैं, लेकिन आपके लिए सबसे ज़रूरी है इन बदलावों को ध्यान में रखकर अपनी प्लानिंग करना—जैसे कि विदेश में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप की तलाश या विदेश में व्यापार के नए मौके देखना। इस पेज पर हम हर हफ़्ते नई ख़बरें लाते रहेंगे, ताकि आप हमेशा अपडेटेड रह सकें।
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फ्रांस में दक्षिणपंथी नेशनल रैली (RN) की विजय देश की विदेश नीति पर गहरा असर डाल सकती है। यूरोपीय संसद चुनावों के बाद, राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने आकस्मिक विधायी चुनावों की घोषणा की है। इस बदलाव के चलते यूक्रेन, इस्राइल, NATO और यूरोपीय संघ पर फ्रांस का रुख बदल सकता है।
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