इस वर्ष की थीम 'यूनाइटेड बाय यूनिक' के माध्यम से व्यक्तिगत कैंसर देखभाल पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। यह थीम अलग-अलग प्रकार के कैंसर के मामलों को व्यक्तिगत रूप से समझने और उनका उपचार करने की जरूरतों को रेखांकित करती है। यह दृष्टिकोण चिकित्सकीय उपचार को अधिक प्रभावी और मानवकेंद्रित बनाता है, जिससे रोगियों को बेहतर परिणाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
विश्व कैंसर दिवस 4 फरवरी को मनाया जाता है, और यह 2000 से वैश्विक जागरूकता के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बन चुका है। विभिन्न देशों में इस दिन को मनाने के लिए अनेकों कार्यक्रम और गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, 'अॅपसाइड डाउन चैलेंज' लोगों को सामूहिक रूप से शामिल कर स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक प्रयास है।
इस साल इंटरनेशनल कैंसर फाउंडेशन और सरकारों के सहयोग से वैश्विक मंच पर कई विशेष कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। इन समर्पित कार्यक्रमों के माध्यम से कैंसर के खतरे के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है, साथ ही समान चिकित्सा सुविधा की मांग को भी बल मिल रहा है।
2022 में 10 मिलियन से अधिक लोग कैंसर का शिकार हुए, जो इस रोग की व्यापकता और गंभीरता को स्पष्ट करता है। कैंसर जागरूकता और उसकी रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की अधिक आवश्यकता है। व्यक्तिगत देखभाल में निवेश और अनुसंधान की दिशा में अग्रसर होते हुए, हमें एक नई दिशा में काम करने की जरूरत है।
इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य कैंसर के खिलाफ जीत हासिल करना है, जहाँ हर जीवन मायने रखता है। इस वर्ष का कार्यक्रम कैंसर के प्रति जागरूकता और कार्यवाही में योगदान देने वाले लोगों का सम्मान करता है। इस प्रकार, यह दिवस न केवल रोग के बारे में जागरूकता फैलाने में सहायक है, बल्कि नई उपचार विधियों और तकनीकों की खोज को भी प्रोत्साहित करता है।
Priyanka R
5 02 25 / 18:02 अपराह्नये 'यूनाइटेड बाय यूनिक' वाली थीम तो बस एक और गूगल वाला मार्केटिंग ट्रिक है 😒 सरकार और फाउंडेशन असल में दवाओं की कीमतें बढ़ा रहे हैं और लोगों को ये सब नाटक दिखा रहे हैं... असली समाधान? फ्री मेडिसिन और लैब्स का नेशनलाइजेशन। #ConspiracyButTrue
Rakesh Varpe
6 02 25 / 16:16 अपराह्नव्यक्तिगत देखभाल का अर्थ है हर मरीज के लिए अलग ट्रीटमेंट प्लान। ये सिर्फ ट्रेंड नहीं बल्कि साइंस है।
Girish Sarda
7 02 25 / 18:09 अपराह्नअसल में ये थीम बहुत अच्छी है लेकिन देश में ज्यादातर लोग अभी भी बेसिक डायग्नोसिस के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं। क्या ये सब बस शहरों तक सीमित है?
Garv Saxena
9 02 25 / 03:42 पूर्वाह्नहम सब ये बातें सुन चुके हैं न? 'व्यक्तिगत देखभाल'... जैसे कोई डॉक्टर अब एक इंसान को देखेगा और न कि एक रोग को। पर जब एक बार आप अस्पताल में जाते हैं तो आप एक बार नंबर लेते हैं और फिर 4 घंटे बैठते हैं और डॉक्टर आते हैं और बोलते हैं 'आपको टी-स्टेज है' और चले जाते हैं। ये सब बस एक फैंटेसी है जिसे वैश्विक संगठन बेच रहे हैं। वास्तविकता? आपका बैंक बैलेंस ही आपकी ट्रीटमेंट की क्वालिटी तय करता है।
Rajesh Khanna
11 02 25 / 03:17 पूर्वाह्नहर छोटी से छोटी कोशिश अच्छी है। अगर इस थीम से एक भी आदमी अपने बारे में जागरूक हो जाए तो ये प्रयास सफल है। जय हिंद!
Sinu Borah
12 02 25 / 04:24 पूर्वाह्नअरे भाई ये सब बकवास है। कैंसर तो बस एक बीमारी है। जिन्हें लगता है कि ये बड़ा विषय है वो अपने फेसबुक पर लाल रिबन लगाते हैं और फिर अपनी चाय के साथ बैठ जाते हैं। कोई असली काम करता है? नहीं। बस एक ड्रामा है। अगर आप वाकई चाहते हैं कि कैंसर खत्म हो तो स्मोकिंग और जंक फूड पर टैक्स बढ़ा दो। बाकी सब बकवास है।
Sujit Yadav
12 02 25 / 15:02 अपराह्नइस थीम का विश्लेषण करने के लिए एक शास्त्रीय आधार आवश्यक है। व्यक्तिगत देखभाल की अवधारणा नए निजीकरण वाले नैतिक ढांचे के साथ अनुकूलित हो रही है, जिसमें रोगी की स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। यह एक उच्च-स्तरीय नैतिक अपराध है जिसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन किया जाना चाहिए। 🤔🩺
Kairavi Behera
14 02 25 / 12:54 अपराह्नअगर आपको लगता है कि आपको कैंसर के लक्षण हैं तो डरिए मत। सबसे पहले अपने आसपास के स्वास्थ्य केंद्र पर जाएं। बहुत सारे बीमारियां ऐसी होती हैं जो कैंसर जैसी लगती हैं। जल्दी जाना ही बचाता है। आप अकेले नहीं हैं।
Aakash Parekh
15 02 25 / 06:36 पूर्वाह्नये सब अच्छा है लेकिन असली समस्या ये है कि गांवों में तो डॉक्टर भी नहीं हैं। बस एक ट्रेनिंग की बात कर रहे हो।
Sagar Bhagwat
17 02 25 / 06:07 पूर्वाह्नअरे ये 'अॅपसाइड डाउन चैलेंज' क्या है? मैंने तो सुना ही नहीं। क्या ये वो है जहां लोग उल्टे लटकते हैं? 😅
Jitender Rautela
17 02 25 / 09:27 पूर्वाह्नहर कोई बस ट्रेंड पर चल रहा है। असली जागरूकता तो तब होगी जब किसी ने अपने दादा को देखा होगा जो 5 साल तक बिना डायग्नोसिस के दर्द में रहा। तब तक ये सब बस टैगलाइन है।
abhishek sharma
19 02 25 / 05:35 पूर्वाह्नदेखो, मैं तो हमेशा से कहता रहा हूं कि ये विश्व कैंसर दिवस सिर्फ एक बड़ा फेसबुक फंडर जैसा है। लोग एक दिन के लिए गहरा बनने की कोशिश करते हैं, फिर अगले दिन वापस अपनी बियर और बिल्ली के वीडियो में खो जाते हैं। असली समाधान? बेसिक हेल्थकेयर को राष्ट्रीय स्तर पर बनाओ। जब तक एक गरीब आदमी को एक ब्लड टेस्ट के लिए दो दिन लगते हैं, तब तक ये सब बस एक ड्रामा है। और हां, मैंने अपने दोस्त को एक बार ब्लड टेस्ट के लिए ले जाया था... वो दिन जीवन बदल गया। लेकिन उसके बाद वो डॉक्टर ने बस एक टेबलेट दी और कहा 'मासिक रूप से आएं'। ये वो व्यक्तिगत देखभाल है जिसके बारे में ये सब बातें हो रही हैं।